पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/५५४

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भारत में अंगरेज़ी राज

१५ भारत में अंगरेज़ीराज गया, उसने कम्पनी के किसी भी श्रादमी को किले के अन्दर आने की इजाजत न दी। वह अपने मुट्ठी भर श्रादमियों सहित किले की रक्षा के लिये तैयार हो गया। किन्तु राजा दयाराम के पास न कम्पनी का सा सामान था और न उतनी विशाल सेना । हाथरस के किले और नगर दोनों के ऊपर गोलबारी शुरू हुई । २३ फ़रवरी को एक ओर से नगर की दीवार का कुछ टुकड़ा टूटा । दूसरी मार्च को कहा जाता है कि किसी अंगरेजी तोप का एक गोला किले के भीतर बारूद के मेगजीन में जाकर पड़ा, जिससे मेगज़ोन में आग लग गई और किले को बहुत बड़ी हानि हुई । मालूम होता है कि इस किले के अन्दर भी कम्पनी के 'गुप्त उपाय अपना कुछ काम कर चुके थे। फिर भी किले के अन्दर की तो बराबर अंगरेज़ी तोपों का जवाब देती रहीं। किन्तु कब तक? अन्त में जब राजा दयाराम ने देख लिया कि अधिक देर तक कम्पनी की सेना से किले को बचा सकना असम्भव है तो एक दिन श्राधी रात को अपने दो चार साथियों सहित किले से बाहर निकल गया। मार्ग में कुछ गोरे सिपाहियों ने उसे घेर लिया, किन्तु उनका खात्मा करता हुआ राजा दयाराम अंगरेजी सेना के हाथों से बच कर अपनो गजधानी छोड़ कर निकल गया। हाथरस का किला अंगरेजों के हाथों में श्रा जाने के बाद ___ मुरसान के राजा भगवन्तसिंह की हिम्मत और मुरसान पर काज़ा भी टूट गई। कहा जाता है कि उसने बिना लड़े अपना किला और राज दोनों अंगरेजों के सुपुर्द कर दिए । इस