तीसरा मराठा युद्ध १६७ जब कि उस समय कम्पनी के अफसरों ने अनेक बार ही . मराठों और राजपूतों और विशेष कर जयपुर पिण्डारियों का का इत्यादि के इलाके पिण्डारियों को उकसा इस्तेमाल कर उनसे लुटवाए, दूसरी ओर पिण्डारियों के कम्पनी के इलाके पर हमला करने को केवल दो सास मिलाले मिलती हैं। एक सन् १८०-१८०६ में, जब कि पिण्डारियों ने गुजरात के किसी भाग पर धावा किया ; और दूसरे सन् १८१२ में, जब कि उन्होंने मिरज़ापुर और शाहाबाद में कुछ लूट मार की। किन्तु इन दोनों वार अंगरेजों ने कोई विशेष प्रयत्न उनके विरुद्ध महीं किया। यदि डकैतियों से प्रजा की रक्षा करना ही लॉर्ड हेस्टिंग्स का वास्तविक उद्देश होता तो ब्रिटिश भारत के अन्दर उन दिनों असंख्य डाक् अपने भयङ्कर कृत्यों से ब्रिटिश भारतीय प्रजा को दुस्खी कर रहे थे, जिसका वृत्तान्त एक पिछले अध्याय में दिया जा चुका है । लॉर्ड हेस्टिंग्स ने उन डाकुओं को दमन करने का कभी कोई उपाय नहीं किया। पिण्डारियों से झगड़ा मोल लेने के लिए अक्तूबर सन् १८१५ में मेजर फ्रेजर ने निस्सन्देह बिना गवरनर- मगड़ा जनरल की आज्ञा के किसी कारण पिण्डारियों मोल लेना के एक जत्थे पर हमला कर दिया। इस पर बेज़ार होकर पिण्डारियों ने कृष्णा नदी के किनारे किनारे समस्त अंगरेज़ी इलाके में लूट मार शुरू कर दी। इसके बाद पिण्डारियों और अंगरेजों के अनेक संग्राम हुए, जिन्हें विस्तार से बयान
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