१६६ भारत में अंगरेजी राज प्रोफेसर विलसन ने भी लिखा है कि- "माम तौर पर पिण्डारी लोग वीर होने के अतिरिक्त ईमानदार और वफादार भी होते थे, और जिन जिन ग्रामों से वे गुजरते थे उनमें अपने व्यवहार के कारण इतने सर्वप्रिय हो जाते थे कि बाद में गाँव वाले उनके विरुद्ध किसी तरह की खबर देने या मदद देने के लिए हरगिज़ राजी न होते थे।" हम एक पिछले अन्याय में दिखा चुके हैं कि स्वयं कम्पनी के अफसरों हो ने इन धीर पिण्डारियों को उत्तेजना और धन दे देकर उनसे अनेक बार अपने मराठा स्वामियों के साथ विश्वासघात कराया और देशी नरेशों के इलाकों को लुटवाया। पिण्डारियों का इस प्रकार का उपयोग उन दिनों कम्पनी के अफसरों की एक साधारण नीति थी। किन्तु अंगरेजों के संसर्ग से पहले न पिण्डारियों का कभी डकैती पेशा था, न वे स्वभाव से निर्दय थे और न उन्होंने कभो अपने मराठा स्वामियों के साथ विश्वासघात किया था। पिण्डारी श्राम तौर पर मराठा नरेशों के सब से अधिक वीर और वफादार अनुयायी थे। यही कारण है कि लॉर्ड हेस्टिंग्स मराठों पर तीसरी बार हमला करने से पहले पिण्डारी जाति को विश्वंस कर देना चाहता था । अपने इस कार्य को न्याय्य ठहराने के लिए कहा गया कि पिण्डारी लोग कम्पनी और उसके मित्रों के इलाकों में निरन्तर लूटमार करते रहते हैं। पिण्डारियों की लूटमार और उनकी निर्दयता के अनेक किस्से चारों ओर फैलाए गए, जिनमें से अधिकांश झूठे और कल्पित थे।
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