तोसरा मराठा युद्ध ७१ यह सेना इस प्रकार नियुक्त की गई कि होदिया और होशङ्गाबाद के रास्ते सारी सेना एक साथ नर्बदा पार कर बरार और प्रानदेश के इलाके पर मज़ा कर सके और आवश्यकतानुसार कार्य कर सके; गुजरात से एक डिवीज़न गोहद के रास्ते मालवा में प्रवेश करने के लिए नियुक्त की गई। इतनी अधिक विशाल सेना पहले कभी भी अंगरेजी इलाके से न निकली थी। इस बाज़ाब्ता विशाल सेना के अतिरिक्त २३,००० अनस्थायी सवार और थे, जिनमें से १३,००० दक्खिन की सेना के साथ थे और १०,००० बङ्गाल की सेना के साथ । आगे चल कर इस लेखक ने म्पष्ट लिखा है कि इस पूरी सेना का उद्देश ममस्त मराठा रियासतों को घेर कर उनके स्वाधीन अस्तित्व को सदा के लिए मिटा देना था। दूसरे मराठा युद्ध के समय अंगरेज़ों की पराजयों का एक कारण यह भी था कि उस समय तक अंगरेज का मध्य भारत की भूमि से बहुत ही कम परिचित । सन २०१५स पहल कम्पनी के दफ्तरों में हिन्दोस्तान के जो नकशे होते थे वे बिलकुल गलत और हास्यजनक होते थे। यहाँ तक कि राजपूताने के नकशे में चित्तौड़ उदयपुर के पच्छिम में होता था और गजपूताने की नदियों का प्रवाह प्रायः उलटा दिखाया जाता था। नए युद्ध से पहले अंगरेज़ों ने राजपूताना और मध्यभारत के भूगोल का ठीक ठीक पता लगा लेना आवश्यक समझा । इसलिए सन् १८०६ में राजस्थान' नामक • Memoirs of Colonal Skinner, vol 11, pp 124-129
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