तीसरा मराठा युद्ध ६८१ अन्त में अहमदाबाद के इलाके की बाबत गायकवाड़ के नाम . के पट्टे की मियाद खत्म होने के करीब पाई । गंगाधर शास्त्री - उस पट्ट को फिर से नया करवाना ज़रूरी था। इसलिए अंगरेज़ों के कहने के अनुसार फ़तहसिंह गायक- वाड़ ने गङ्गाधर शास्त्री को इस काम के लिए यानी पेशवा के साथ पिछला हिसाब साफ करने और नया पट्टा प्राप्त करने के लिये अपना वकील नियुक्त करके पूना भेजा। गङ्गाधर शास्त्री एक अत्यन्त चतुर ब्राह्मण था। वह पूना के आस पास का रहने वाला था। घर के एक माधारण चाकर सं बढ़ते बढ़ते वह इस पद को पहुंचा था। बड़ोदा और पूना में वह अंगरेजों के गुप्तचर की हैसियत से दोनों गज्यों के सर्वनाश के उपाय किया करता था । "बड़ोदा गजेटियर" का अंगरेज़ रचयिता लिखता है- ____“गङ्गाधर शास्त्री मेजर ए० वाकर के साथ बड़ोदा गया । सन् १८०२ मे उसने अंगरेज सरकार की नौकरी कर ली। जून सन् १८०३ मे सूरत को अटुबीसी के चौरासी परगने में दन्दोल का गाँव सदा के लिए उसके और उसके वंशजों के नाम कर दिया गया । इस गाँव की वार्षिक आमदनी पाँच हजार रुपए थी।xx x ___"१२ जनवरी सन् १८०५ को गङ्गाधर शास्त्री की लड़की की शादी के मौके पर बम्बई सरकार ने उसे चार हजार रुपए दिए । १५ मई सन् १८०६ को गङ्गाधर को एक पालकी दी गई और उसके खर्च के लिए १२०० रूपए सालाना मअर किए गए।" • Baroda Gazetteer, p 210, footnote
पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/५७७
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