भारत में अंगरेज़ी राज भी उसके लिए जिम्मेदार बताया गया, और इस कल्पित अपराध के बदले में पेशवा के अधिकांश उर्वर प्रान्त, जिनमें पेशवा का गुजरात का इलाका भी शामिल था, पेशवा से तलब किए गए। यह इलाका गायकवाड़ को देने के लिए या गंगाधर के कुटुम्बियों को देने के लिए नहीं मांगा गया, वरन् अंगरेज़ कम्पनी बहादुर के लिए । किसी प्रकार पूना में पेशवा को घेर लिया गया और संगीनों के बल १३ जून सन् १८१७ को कातर बाजीराव से एक नए सन्धिपत्र पर दस्तखत करा लिए गए। इस सन्धि पत्र के अनुसार पेशवा ने अपना गुजरात का पूरा प्रान्त जिस पर अंगरेजों की वर्षों से नज़र थी, कम्पनी के हवाले कर दिया। कहा जाता है कि इस अवसर पर बाजीगव ने यह भी स्वीकार कर लिया कि गंगाधर शास्त्री की हत्या में मेरा हाथ था। संगीनों या कूटनीति के बल इस प्रकार किसी से अपराध म्वीकार करा लेना कम्पनी के भारतीय इतिहास में कोई अपूर्व बात नहीं थी। शिवाजी के वंशज सतारा के गजा प्रतापसिंह पर जब यह दोष लगाया गया कि तुम अंगरेजों के विरुद्ध साज़िश कर रहे हो, तो उससे यह साफ कहा गया था कि यदि तुम यह लिख कर दे दो कि तुम वास्तव में इस अपराध के दोषी हो तो तुम्हें तुम्हारी गद्दी पर बहाल रक्खा जायगा। मेजर वामनदास बसु ने अपनी पुस्तक “दी स्टोरी श्रॉफ़ सतारा" में दिखलाया है कि राजा प्रतापसिंह ने अपनी गद्दी से हाथ धो लिए, किन्तु इस झूठे खीकृति पत्र पर दस्तखत करना स्वीकार न किया। भेद केवल यह था कि
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