पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/५९४

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तीसरा मराठा युद्ध

तीसरा मराठा युद्ध ६६७ सकता । जब हम लोग मिलने गए तो उसका जिगर इतना बढ़ा हुआ था कि करीब प्राधी डबलरोटी के बराबर उसके पेट से एक मोर को निकला हुआ दिखाई देता था। वह बहुत दुर्बल हो गया था और सचमुच उसे देखकर दया पाती थी। उसने यह प्रार्थना की कि मुझे मरने के लिए काशी जानं दिया जाय । किन्तु किसी ने इस प्रार्थना पर ध्यान न दिया x xx।" __ त्रयम्बकजी अनपढ़ था, फिर भी वह एक दूरदर्शी नीतिज्ञ और मराठा सत्ता का सच्चा हितचिन्तक था । उसका अपराध केवल यह था कि वह अपने स्वामी पेशवा बाजीराव का जोवन भर वफादार रहा और एलफ़िन्सटन जैसों की चालों की ओर से बाजीराव को सावधान करता रहा। इस अपराध के दण्ड में उसे अपमान और कष्टों के साथ चुनार के किले के एक कोने में वर्षों सड़ सड़ कर प्राण देने पड़े और अन्त में उसकी यह अन्तिम इच्छा भी कि मेरी काशी में मृत्यु हो, पूरी न होने दी गई। सिंहगढ़, पुरन्धर और रायगढ़ के किले कम्पनी को मिल चुके थे। फिर भी बाजीराव से कम्पनी की माँगे बाजीराव से । भेड़िये और मेमने की सुप्रसिद्ध श्राख्यायिका में, भेडिए की मांगों के समान हर क्षण बढ़ती और बदलती चली गई। सिंहगढ़ आदि पर कम्पनी का कब्जा हुए एक महीना भी न बीता था कि दो वर्ष पूर्व की गंगाधर शास्त्री की मृत्यु के मामले को फिर से उखाड़ा गया। उस समय केवल त्रयम्बकजी को इस हत्या के लिए दोषी ठहराया गया था। किन्तु अब पेशवा बाजीराव को छेड़छाड़