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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/६१

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टीपू सुल्तान

टीपू सुलतान सम्बन्ध रखता है। इस पुस्तक में एक दूसरे स्थान पर बयान किया जा चुका है कि हैदरअली ने उदारतावश अपने राज में यूरोप के ईसाई पादरियों को अपने मत प्रचार की इजाजत दे दी थी और उनकी इच्छानुसार कई तरह की सुविधाएँ कर दी थी, जिसके सबब खासकर समुद्र तट के कुछ लोगों ने ईसाई मत स्वीकार कर लिया था। किन्तु कम्पनी और हैदरअली के संग्रामों में इन्हीं यूरोपियन और भारतीय ईसाइयों ने हैदरअली के विरुद्ध अंगरेजों का साथ दिया । अपनी ईसाई प्रजा की ओर से इसी तरह का कटु अनुभव कई बार टीपू सुलतान को भी हुअा। ये हिन्दोस्तानी ईसाई वास्तव में यूरोपियन पादरियों के हाथों में खेल रहे थे। मजबूर होकर टीपू को उनके विरुद्ध उपाय करना पड़ा। जिस लेल की ओर हम सकेत कर रहे हैं, उसमें लिखा है कि एक बार समुद्र तट के कुछ ईसाइयों को "ज्यादती को सुनकर" टीपू ने श्राक्षा दी कि तुम लोग अब या तो भैसूर राज छोड़ कर चले आओ और या मुम्मलमान हो जाओ। एक इतिहास लेखक लिखता है कि साठ हज़ार ईसाई मर्द, औरत और बच्चे गिरफ्तार करके सुलतान के सामने पेश किए गए, उन्हें इसलाम धर्म में ले लिया गया और जीविका के लिए उन्हें राज की सेना में भरती कर लिया गया। एक दूसरा अंगरेज़ इतिहास लेखक लिखता है कि इन लोगों की संख्या करीब तीस हजार थी। सम्भव है इस दूसरे अन्दाजे • Histortual Sketches of the South India ite, by Colonel Mark Wilks, vol 11, pp 529,530