१०१२ भारत में अंगरेज़ी राज इसी तारीख के रोजनामचे में हेस्टिग्स ने विस्तार के साथ लिखा है कि अप्पा साहब के विरुद्ध महल के अप्पा साहब को का अन्दर किस प्रकार एक दल खड़ा किया गया, न लाभ किस प्रकार उसे यह लोभ दिया गया कि चूंकि बाला साहब के कोई पुत्र नहीं है, इसलिये यदि तुम अंगरेजों का कहना मान लोगे तो अंगरेज़ बाला साहब को कोई पुत्र गोद न लेने देंगे और अन्त में नागपुर की गद्दी तुम्हें दिलवा देंगे, किस प्रकार अप्पा साहब को राज के भीतर से और बाहर से तरह तरह के झूठे डर दिखाए गए, इत्यादि। अंगरेजों ही के पत्रों से यह भी ज़ाहिर होता है कि नागपुर के महल में उस समय दो दल थे। पुरुषाजी और नागपुर में दो उसके पक्ष के लोग भोसले, सींघिया और पेशवा में सच्चा मेल कायम करना चाहते थे। अंगरेज अप्पा साहब को सामने करके उसे बाला साहब सींधिया और पेशवा तीनों की ओर से बहका रहे थे और इस नए दल द्वारा उस मेल को रोकने के प्रयत्नों में लगे हुए थे। alliance by which Nagpur in tact ranges itself as a feudatory state under our protection A singular contention of personal interests at the court of that country, resulting from the unexpected death of Raghuji Bhonsla, the late Raja, has enabled me to effect that which has been truntlessly laboured at tor the last twelve years. Though dexterity has been requisite, and money has removed obstructions, I can affirm, that the principles of my engagement are of the purest nature "---Private Journal of the Marquess of Hastings, pp 254, et seq
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