तीसरा मराठा युद्ध १०२१ असफलता इस अवसर पर नारायण पण्डित, जो अंगरेजों से मिला हुआ था, अप्पा साहब को धोखा देकर अंगरेज़ी छावनी में ले गया। इस पर भी राज की सेना ने अप्पा साहब की प्राज्ञा मानने से इनकार कर दिया। यह सेना अपने स्थान से अंगरेजी सेना की | न हटी। १६ दिसम्बर को १२ बजे दिन के जब . " अप्पा साहब की इजाजत सं अंगरेजी सेना तोपों पर कब्ज़ा करने के लिए पहुँची तो राज की सेना ने अंगरेज़ी सेना पर गोलियां चलाई । युद्ध शुरू हो गया। राज की सेना में कोई योग्य सेनापति न था। उनका राजा तक शत्रु के हाथों में था। फिर भी अंगरेजी सेना इस वफ़ादार सेना को उसके स्थान से न हटा सकी, और बिना अपना कार्य पूरा किए हार कर अपने खेमों की ओर लौट आई। इस संग्राम के बाद अंगरेजों ने देख लिया कि इतनी विशाल सेना के होते हुए भी लड़ाई में अरबों को परास्त कर सकना इतना सरल न था। जेनकिन्स ने फिर अपनी कूटनीति से काम लिया। लिखा है कि १७ और १८ दो दिन अरब सेना के सरदारों को समझाने बुझाने में खर्च किए गए, किन्तु व्यर्थ । अरबो ने नगर खाली करने से साफ इनकार कर दिया। मजबूर होकर अंगरेज़ सेनापति जनरल डवटन को फिर युद्ध का निश्चय करना पड़ा। नगर पर चढ़ाई करने के लिए एक नया तोपखाना अकोला से मँगाया गया। दोबारा मैदान गरम हुआ । २४ दिसम्बर को जनरल डवटन के अधीन अंगरेज़ी सेना ने पूरा ज़ोर लगा कर अरबों को
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