पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/६३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
४८३
टीपू सुल्तान

टीपू सुलतान अन्त समय तक टीपू के दरबार में ऊँची से ऊंची पदवियाँ हिन्दुओं को मिली हुई छे । उसके दो मुख्य मन्त्री पूनिया और कृष्णराव ब्राह्मण थे, जिनमें पूनियाँ उसका प्रधान मन्त्री था। इन दोनों मन्त्रियों का प्रभाव उस समय अत्यन्त बढ़ा हुआ था। इनके अलावा बेशुमार ब्राह्मण टीपू के दरबार में खास कर राजदूतों का काम करने और दरबार में लोगों का परिचय कराने पर नियुक्त थे। __ एक बार मलाबार तट की नय्यर जाति के कुछ लोगों ने अपने ईसाई जाति स्वीकार करने या न करने के विषय में टीपू सुलतान से सलाह माँगी । टोपू ने उत्तर दिया :- ___"राजा प्रजा का पिता होता है । इस हैसियत से मेरी प्रापको यह सलाह है कि आप लोग अपने पूर्व पुरुषों के मज़हब (गानी हिन्दू मज़हब ) पर कायम रहें, और यदि आप को अपना मज़हब बदलने की इच्छा है ही तो माप ( ईसाई होने की जगह ) अपने पिता तुल्य राजा का मज़हब स्वीकार करें।" जगद्गुरु श्री शङ्कराचार्य का शृङ्गेरी मठ मैसूर के राज में था। टीपू उस समय के शोरी स्वामी जगद्गुरु जगद्गुरु शङ्कराचार्य शहराचार्य श्री सच्चिदानन्द भारती का बहुत - बड़ा आदर करता था। जगद्गुरु के नाम टोपू सुलतान के समय समय पर भेजे हुए तीस से ऊपर पत्र इस समय मौजूद हैं, जो अत्यन्त मान सूचक शब्दों में लिस्ने हुए हैं। मैसूर राज्य के पुरातत्व विभाग के डाइरेक्टर ने दो मूल पत्रों के फोटो हमारे पास भेजे हैं, जिनमें से एक को नमूने के तौर पर हम इस पुस्तक में प्रकाशित कर रहे हैं। पत्र कमड़ी भाषा में है।