पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/६५७

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भारत में अंगरेज़ी राज

१०५४ भारत में अंगरेजी राज विचारपूर्ण और न्यायपूर्ण होती थी। परमी कौम के वीर और अभिमानी चरित्र का भी हमें इतना कम बोध था कि हम इस बात का ठीक ठीक अनुमान न कर सके कि रन में हमारा स्वागत किस तरह का होगा।"* दूसरी ओर जो सेना स्थलमार्ग से बरमा की सरहद पर भेजी गई थी उसकी हालत और भी अधिक खराब अंगरेजी सेना की हुई लॉर्ड ऐमहर्ट के २ अप्रैल सन् १८२४ के दुर्गति एक पत्र में लिखा है कि इस सेना ने आसाम निवासियों को लोभ देकर बरमियों के विरुद्ध भडकाने के पूरे प्रयत्न किए । विलमन लिखना है कि अंगरेज़ी सेना के आसाम में प्रवेश करते ही आसाम निवासियों और आस पास की अन्य जातियों के नाम एक एलान कम्पनी की ओर से प्रकाशित किया गया, जिसमें उनसे झूठे सच्चे वादे करके उन्हें अंगरेज़ों की ओर करने का प्रयत्न किया गया। अंगरेज़ यह सब कतर ब्यौत कर ही रहे थे कि बरमा के महाराजा ने अपने प्रसिद्ध मनापति महामेंजी बन्दुला के अधीन करीब बारह हज़ार मना अंगरेज़ों के मुकाबले के लिए भेजी। • "h boats especiallv, Rangoon was known to be well supplied, and It was bv many anticipated, that city would afford the means of pushing up the river a force sufficient to subrue the capital, and bring the war at once to a conclusion “But in these calculations, the well tonsiderated jower and judicious policy of the Government towards its conquered provinces were overlooked and the warlike and haughty character of the nation was so imperfectly known, that no correct Judgement could be formed of our probable reception "~-Narratne of the Burmer War. by Snodgrass, pp 17, 18.