पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/६५८

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लॉर्ड ऐमहर्ट

लॉर्ड ऐमहर्ट १०५५ मई सन् १८२४ के शुरू में इस संना के एक दल ने नाफ नदी पार कर रामू पहाड़ से १४ मील दक्खिन में रत्नपुल्ला नामक स्थान पर डेरे डाले । कम्पनी की विशाल मना तैयार थी ही, दोनों सेनाओं में एक घमासान युद्ध हुआ, जिसमें अंगरेज़ी सेना के अनेक अफसर और असंख्य सिपाही मारे गए । शेष अंगरेज़ी सेना को बुरी तरह हार खाकर पीछे हट आना पड़ा । अंगरेज़ी सेना की इस हार से कलकत्त में और वास्तव में समस्त भारत में एक तहलका मच गया। मेजर श्रारचर लिखता है :- कलकत की सरकार को वास्तव में यह डर हो गया कि कहीं बरमी सेना सुन्दरवन के मार्ग से पाकर कलकले पर हमला न कर बैठे।"* इस पगजय के सम्बन्ध में सर चार्ल्स मैटकॉफ़ ने गवरनर जनग्ल के नाम = जून सन् १८२४ को एक पत्र कलकत्ते में लिखा जिसके कुछ वाक्य ये है :- तहलका "हर समय समस्त भारत हमारे पतन की बाट जोहता रहता है। हर जगह लोग हमारे नाश को देख कर खुशी होंगेxx x और इस तरह के अनेक लोगों को भी कमी नहीं है जो अपनी शक्ति भर हर तरह से हमारे नाश में सहायता देंगे। यदि कभी भी हमारा नाश शुरू हुश्रा तो सम्भवतः अत्यन्त वेग के साथ और एकाएक होगा ।xxx पहाड़ की घाटी से गिर कर खन्दक तक पहुँचने में हमें शायद एक ही कदम लेना पड़े। • "The Supreme Government was actually afraid of a Burmese invasion an Calcutta, by way of the Sundarbuns, "-Major Archar