१०६० भारत में अंगरेजी राज था। बङ्गाल के सिपाहियों को इन विशेष शिकायतों की गाथा कुछ लम्बो और हमारे प्रसंग से बाहर है। बङ्गाल के हिन्दोस्तानी सिपाहियों को यह सब शिकायतें दिन प्रति दिन बढ़ती चली गई। अनेक बार ये ___ शिकायतें अंगरेज़ अफ़सरों के सामने पेश की सिपाहियों की " गई, किन्तु किसी ने इन पर ध्यान न दिया। शिकायते इस परिस्थिति में बैरकपुर की ४७ नम्बर देशी पलटन को बरमा जाने की प्राज्ञा दी गई। इन सिपाहियों को जब कभी एक स्थान से दूसरे स्थान जाने की प्राज्ञा मिलती थी तो उन्हें अपने सामान के लादने ले जाने का खर्च अपने पास से देना पड़ता था और स्वयं ही उसका प्रबन्ध करना होता था; जब कि इतिहास लेखक थॉर्नटन लिखता है कि गोरे सिपाहो ऐसे अवसरों पर "अपना थैला भी स्वयं लेकर न चलते थे।" सर मॉर्क कबन स्वीकार करता है कि सन् १८५७ तक हिन्दोस्तानी सिपाहियों का थैला इतना भारो होता था कि वह उनकी जान का बवाल बन गया था ।* इतिहास लेखक थॉर्नटन लिखता है कि बैरकपुर की हिन्दोस्तानी पलटन को जब कूच की श्राज्ञा दो गई तो सामान बैरकपुर का हत्या के ले जाने के लिए उन्हें बैल गाड़ियाँ तक न मिल सकों। सिपाहियों ने अपने अंगरेज़ काय • “ The present knapsack . Sir Mark Cubbun, K C. B 1858 is the curse of the native army "-
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