लॉर्ड ऐमहर्ट २०६१ अफ़सरों से मदद मांगी। जवाब मिला कि तुम्हें अपना प्रबन्ध स्वयं करना होगा। इस सब के अतिरिक्त कहा गया कि इस पलटन को समुद्र के रास्ते कलकत्ते से रंगून जाना होगा। पलटन के सिपाही सब उच्च जाति के हिन्दू थे। इन लोगों ने केवल भारत के अन्दर स्थल सेवा के लिए कम्पनी की नौकरी की थी। समुद्रयात्रा करने पर वे सदा के लिए अपनी जाति से बाहर कर दिए जाते । सिपाहियों ने अपनी सब शिकायतों की एक लम्बी, किन्तु विनयपूर्ण अरज़ी लिख कर कमाण्डर-इन-चीफ़ की संवा में भेजी। किन्तु इस पर भी कुछ ध्यान न दिया गया। लिखा है कि इन सभी सिपाहियों ने तुलसी और गंगाजल हाथ में लेकर इस बात की शपथ खाई कि हममें से कोई जहाज़ के ऊपर पैर न रक्खेगा । वे खुश्की पर कहीं भी जाने और लड़ने के लिए तैयार थे। ___ ३० अक्तूबर सन् १८२४ को सारी पलटन परेड के लिए बुलाई गई । उनके थैले उस समय उनके कन्धों पर न थे। थैले फट चुके थे, उन्होंने अपनी शिकायते कमाण्डिङ्ग अफ़सर के सामने पेश की। न उन्हें कोई जवाब दिया गया और न उनकी कोई शिकायत दूर की गई। उस दिन परेड बरखास्त कर दी गई । कलकत्ते में कमाण्डर-इन-चीफ़ को सूचना दी गई। फौरन् दो पलटन पैदल गोरे सिपाहियों की, एक तोपखाना और कुछ गवरनर जनरल की बॉडी गार्ड सेना कलकत्ते से बैरकपुर भेजी गई। पहली नवम्बर को सबेरे ४७ नम्बर हिन्दोस्तानी पलटन को फिर परेड के लिए बुलाया गया। परेड पर आते ही एकाएक इन
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