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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/६६५

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१०६२
भारत में अंगरेज़ी राज

१०६२ भारत में अंगरेजी राज लोगों ने देखा कि उनके चारों ओर गोरी पलटने खड़ी हुई हैं। हिन्दोस्तानी सिपाहियों से कहा गया कि या तो जहाँ कहा जाय, कूच के लिए राजी हो और या हथियार रख दो। इन लोगों को अभी तक यह मालूम न था कि भरा हुआ तोपखाना गोरी पलटनों के पीछे तैयार खड़ा है । वे कुछ समझे और कुछ न समझे । सर जॉन के लिखता है कि उन्हें किसी तरह की सूचना नहीं दी गई और न सावधान किया गया। फौरन् तोपखाने के पीछे से उनके ऊपर गोले बरसने शुरू हो गए। असहाय हिन्दोस्तानी सिपाही इतना डर गए कि अपने हथियार फेंक कर वे नदी की ओर भागे। अधिकांश वहीं खेत हुए, कुछ नदी में डूब गए और जो बच निकले उन्हें बाद में कमाण्डर-इन-चीफ़ की आज्ञा से फाँसी पर लटका दिया गया। के लिखता है कि इन लोगों ने अपनी ओर से शस्त्र चलाने का ज़रा भी प्रयत्न न किया; उन्हें इसका विचार तक न था; उनकी बन्दूके तक ख़ाली थीं । के लिखता है कि सम्भवतः उस समय के अंगरेज़ अफसरों का उद्देश इस प्रकार समस्त हिन्दोस्तानी सेना के दिलों में अंगरेजी सत्ता की धाक जमा देना होगा। के यह भी लिखता है कि इस हत्या काण्ड की खबर उन हिन्दोस्तानी सेनाओं तक पहुँच गई, जो बरमा की सरहद की ओर भेजी जा चुकी थीं और उनके दिलों पर इसका बहुत बुरा प्रभाव पड़ा। बाद में उस पलटन का नाम हिन्दोस्तान की पलटनों की सूची से काट दिया गया।