पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/६६९

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१०६५
लॉर्ड ऐमहर्ट

लॉर्ड ऐमहर्ट १०६५ महा बन्दुला पहली अप्रैल सन् १८२५ को दुनूब्यू के किले में शत्रु का मुकाबला करते हुए एक बम के फूटने के कारण अचानक वीर गति को प्राप्त हुआ। बन्दूला की मृत्यु बरमा दरबार के लिए अत्यन्त अशुभ सूचक थी। अनेक अंगरेज़ लेखकों ने बन्दूला की देशभक्ति, उसकी स्वामिभक्ति, उसकी वीरता और उसके युद्ध कौशल की मुक्तकण्ठ सं प्रशंसा की है। मेजर स्नॉड ग्रास लिखता है कि दूनूब्यू में बन्दुला ने यह कह दिया था कि मैं या तो शत्रु पर पूर्ण विजय प्राप्त करूंगा और या इसी प्रयत्न में प्राण दे दूंगा। मालूम होता है कि अंगरेज इस ममय युद्ध बन्द करने के लिये अत्यन्त उत्सुक थे । यद्यपि उस समय तक सुलह के लिए अंगरेज़ बरमी माम्राज्य के कई प्रान्तों में विद्रोह अंगरेजों की खड़े करवा चुके थे। फिर भी वे बरमियों की वोरता से लाचार हो गये थे। इतिहास लेखक विलसन लिखता है कि अंगरेजों ने अब अपनी ओर से सुलह की इच्छा प्रकट की, इस शर्त पर कि बरमा दरबार अंगरेजों की उस समय तक की हानि को पूरा कर दे। विलसन लिखता है- "उस समय बहुत सी ऐसी अफवाहें उड़ी हुई थीं जिनसे प्राशा की जाती थी कि हमारा सुलह का प्रयत्न सफल होगा। कहा जाता था कि परमी साम्राज्य के अनेक भागों मे विद्रोह खड़े हो गए हैं; और मालूम होता है कि यह अफवाह भी दूर दूर तक फैल गई थी कि बरमा का उत्कण्ठा