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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/६७०

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भारत में अंगरेज़ी राज

भारत में अंगरेज़ी राज महाराजा गद्दी से उतार दिया गया है। ये सब ख़बरें झूठी साचित हुई xxx ___बरमा दरबार ने अंगरेजों की शर्तों को स्वीकार न किया और लड़ाई जारी रही। अंगरेजों ने दूसरी बार सुलह के लिए कोशिश की। इस बार एक बरमी पुरोहित से, जिसे राजगुरु कहते थे. अंगरेज़ सेनापति की ओर से एक पत्र बरमा के महाराजा के नाम राजधानी श्रावा भेजा गया। इस पत्र में अंगरेज सेनापति ने अपनी ओर से सुलह की तत्परता प्रकट की। राजगुरु के प्रयत्न से कुछ दिनों के लिए लड़ाई बन्द हो गई और ३० दिसम्बर सन् १८२५ की शाम को दोनों श्रोर के प्रतिनिधियों में बातचीत शुरू हुई । २ जनवरी सन् १८२६ तक एक सन्धिपत्र तैयार कर लिया गया, जिसमें यह भी तय हो गया कि कम से कम १८ जनवरी तक युद्ध बन्द रहे। किन्तु बरमा के महाराजा ने इस सन्धिपत्र को भी स्वीकार न किया और लड़ाई फिर शुरू हो गई। इस बीच उत्तरी भारत के अन्दर एक और विशेष घटना हुई जिसका बरमा युद्ध पर ज़बरदस्त प्रभाव पड़ा। इस घटना को बयान करने के लिये हमें फिर थोड़ी देर के वास्ते बरमा युद्ध के वृत्तान्त को छोड़ देना होगा। भरतपुर के ऐतिहासिक किले के सन्मुख लॉर्ड लेक की पराजय

  • Narrative of the Burmese War, p 199