१०६ भारत में अंगरेजो राज भी कम्पनी के लिए आवश्यक था। इसलिये वेण्टिङ्क ने एक और चाल चली। मैसूर के शासन प्रबन्ध में अनेक झूठे सच्चे दोष निकाले गए, और ७ सितम्बर सन् १८३१ को मैसूर के असहाय गजा को अचानक लॉर्ड बेण्टिङ्क का पत्र मिला कि श्रापके शासन के अमुक अमुक दोषों के कारण राज का समस्त प्रबन्ध आपके हाथों से लंकर अमुक अमुक अंगरेज अफसरों के हाथों में दे दिया गया है । राजा को इस पत्र का उत्तर देने या बेण्टिक के इलज़ामों को गलत साबित करने का भी मौका नहीं दिया गया । अंगरेज अफसर काम संभालने के लिए पहुंच गए और राजा को अपना समस्त कारबार उनके हाथों में सौंप देना पड़ा। जो दोष मैसूर के शासन में निकाले गए उनकी सत्यता या असत्यता के विषय में हम केवल एक विद्वान अंगरेज मेजर ईवन्स बेल के शब्द नीचं उद्धृत करते हैं- "वॉर्ड विलियम बेण्टिक का मैसूर देश को कुर्क कर लना न तो सन्धि की शर्तों के अनुसार सर्वथा न्याय्य था, और न सदाचार की दृष्टि से उचित था; क्योंकि कोई विशेष बात मनुष्यस्व के विरुद्ध राजा की ओर से न हुई थो, और न इसी बिना पर कुर्की जायज़ थी कि हमारे पास के प्रान्तों की शान्ति को किसी प्रकार का खतरा रहा हो।xxx सच यह है कि सब- सीडी की सालाना रकम हमेशा बिलकुल ठीक समय पर अदा की जाती थी, और जिस दिन गवरनर जनरल ने राजा को पत्र लिखा उस दिन कोई क्रिस्त भी कम्पनी को राजा से लंनी बाकी न थी। "इस प्रकार जो दलीलें मैसूर की उस शुरू की कुर्की के लिए दी जाती
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