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भारत में अंगरेज़ी राज

२०६८ भारत में अंगरेजी राज महाराजा रणजीतसिंह स्वयं बहुत दिनों से सिन्ध विजय करने की इच्छा कर रहा था। सन् १८०६ में सिन्ध पर दोहरी हरी कम्पनी और रणजीतसिंह के बीच जो सन्धि हुई नज़रें थी, उसमें यह साफ़ शर्त थी कि सतलज के इस पार का पूरा इलाका कम्पनी के लिए छोड़ दिया जाय और सतलज के दूसरी ओर महाराजा रणजीतसिंह चाहे जितना अपना साम्राज्य बढ़ाने का प्रयत्न करे, अंगरेज़ उसमें बाधक न होंगे। रणजीतसिंह ने इस सन्धि का ईमानदारी के साथ पालन किया और धीरे धीरे समस्त काश्मीर, मुलतान और पेशावर के इलाकों को विजय करके अपने साम्राज्य में मिला लिया। रणजीतसिंह की विशाल सेना उस समय भारत की सबसे अधिक वीर और सुसन्नद्ध सेनाओं में गिनी जाती थी। उसका साम्राज्य विशाल, समृद्ध और उर्वर था। पेशावर तक पहुँचने के बाद उसने सिन्ध विजय करने का इरादा किया, किन्तु दूसरी ओर कम्पनी की भी सिन्ध पर नज़र थी, इसलिये सन् १८०६ की सन्धि के विरुद्ध बेण्टिङ्क ने अब रणजीतसिंह को सिन्ध विजय करने से रोकने का प्रयत्न किया। इसी प्रयत्न के सिलसिले में रणजीतसिंह के पास उपहार भी भेजे गए । बेण्टिक ने स्वयं रणजीतसिंह से मिलने की प्रार्थना की। रणजीतसिंह ने इंगलिस्तान के बादशाह विलियम की भेजी हुई गाड़ो और घोड़े और बेण्टिक के अन्य उपहारों से प्रसन्न होकर बेण्टिक की प्रार्थना स्वीकार कर लो।