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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/७०३

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लॉर्ड विलियम बेण्टिक

महाराजा खॉर्ड विलियम बेण्टिक १०६६ सन् १८३१ के अन्त में रोपड़ नामक स्थान पर पूर्वीय शानो- शौकत के साथ लॉर्ड बेण्टिक और महाराजा __रणजीतसिंह की मुलाकात हुई । लॉर्ड बेण्टिक रणजीतसिंह और बेण्टिङ्ककी इस मुलाकात के समय खासी सेना अपने साथ मुलाकात ले गया। जॉन मैलकम लडलो लिखता है कि अंगरेज़ो का शाही अफ़ग़ान कैदी शाहशुजा उस समय लुधियान में रहता था। लॉर्ड बेण्टिक और महाराजा रणजीतसिंह की इस मुलाकात के अवसर पर यह तय हुन्ना कि शाहशुजा को सामने करके अफ़ग़ानिस्तान पर हमला किया जाय । जनवरी १८३३ में रणजीतसिंह की इजाज़त से तीस हज़ार सेना सहित शाहशुजा ने पहले सिन्ध पर हमला किया। उसके बाद वह कन्धार की ओर बढ़ा, अन्त में काबुल के बादशाह दोस्त मुहम्मद खां ने शाहशुजा को हरा दिया और सन् १८३४ में शाहशुजा को फिर भाग कर लुधियाने में श्राश्रय लेना पड़ा। सिन्ध ही के मामले पर रोपड़ में बेण्टिङ्क और रणजीतसिंह में कुछ मतभेद भी हो गया। बेण्टिङ्क ने यह प्रकट किया कि अंगरेज़ सिन्धु नदी के नीचे के हिस्से पर कब्ज़ा करना चाहते हैं और उस ओर अपना व्यापार बढ़ाना चाहते हैं; इसलिये उन्हें सिन्धु के किनारे किनारे अपनो छावनियाँ बनानी होंगी। रणजीतसिंह ने इसे सुन कर पहले एतराज़ किया, क्योंकि वेण्टिक की मांग सन् १८०६ की सन्धि के विरुद्ध थी। अन्त में किसीन किसी प्रकार लॉर्ड बेण्टिक ने महाराजा रणजीतसिंह को राजी कर लिया और उसे