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भारत में अंगरेज़ी राज

१०२ भारत में अंगरेजो राज का नाश नाम जन्त कर लेना न्याय्य समझता था। पिछले मालिक के दत्तक पुत्रों या भाई भतीजों के अधिकार की कोई परवा न की जाती थी। अकेले बम्बई प्रान्त के अन्दर अनेक जागीरदारों और सर- दारों की रियासतें उनके दत्तक पुत्रों या भाई भतीजों के होते हुए इस प्रकार जब्त कर ली गई। लॉर्ड बेण्टिङ्क ने ब्रिटिश भारत की कचहरियों से फ़ारसी और देशी भाषाओं को बिलकुल हटा कर राष्ट्रीयता के भावों अंगरेज़ी को उनका स्थान देने की पूरी कोशिश की। बेण्टिक इस बात में विश्वास करता था कि भारतवासियों की भाषा, उनके भेष और उनके रहन सहन में अंगरेज़ियत पैदा करके ही उन्हें देश प्रेम और राष्ट्रीयता के भावों से दूर रक्खा जा सकता है और विदेशी सत्ता के अधिक उपयोगी यन्त्र बनाया जा सकता है। इसी लिए वह भारत में अंगरेजी शिक्षा और ईसाई धर्म दोनों के प्रचार का पक्षपाती था। किन्तु शिक्षा का महान विषय एक दूसरे अन्याय का विषय है। बेण्टिङ्क ने भारत में अंगरेजों के उपनिवेश कायम कगने का भरसक प्रयत्न किया। समाचार पत्रों की स्वतन्त्रता का बेण्टिक पका शत्रु था। सगंश यह कि लॉर्ड विलियम बेण्टिक के शासन काल में ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य को अधिक मज़बूत और भारत की पराधीनता की बेड़ियों को और अधिक पका कर दिया।