पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/७१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
४८७
टीपू सुल्तान

टीपू सुलतान ४०० तैयार हुआ है, जो भारत में अपनी किस्म का सबसे बड़ा जलाशय बतलाया जाता है। इस जलाशय की बुनियाद टीपू सुलतान ने रखी थी। इस बार जलाशय के लिए खुदाई होते समय एक पुराना पका बाँध दिखाई दिया, जिसकी नींव में से टीपू सुलतान के समय का फारसी अक्षरों में खुदा हुमा एक शिलालेख मिला जो मैसूर में जलाशय की इमारत के फाटक पर सुरक्षित रखा हुश्रा है। इस शिलालेख का फोटो हम इस पुस्तक के साथ दे रहे हैं। शिलालेख से मालूम होता है कि सब से पहले सन् १७६७ ई० में टीपू सुलतान ने अपने हाथ से इस विशाल जलाशय की नींव रक्सी थी। यह शिलालेख टीपू सुलतान हो के हाथ का रक्खा हुआ बाँध का बुनियादी पत्थर है । सब से विचित्र वात इस शिलालेख से यह मालूम होती है कि जब कि अाजकल श्रावपाशी के हर नए प्रबन्ध के साथ साथ भूमि का लगान बढ़ा दिया जाता है, टीपू सुलतान ने जो 'लखूखा' रुपए इस शुभ कार्य में खर्च किए वे केवल 'अल्लाह की गह पर' खर्च किए गए; यह आज्ञा दे दी गई कि जो किसान इस जलाशय की सहायता से नई ज़मीन में खेती बाड़ी करेंगे, उन्हें औरों की अपेक्षा अधिक लगान देने के स्थान पर अन्य किसानों से एक चौथाई कम लगान देना होगा, और ये ज़मीने उन किसानों के कुलों में सदा के लिए पैतृक रहेंगी। इसी लेख में टीपू ने अपने वारिसों और भविष्य के शासकों को कड़ी से कड़ी फसमें दो हैं कि कोई इस 'अनन्त धर्मकार्य में बाधा न डाले, यानी न उन किसानों की सन्तति से कभी ज़मीने छीनी जाये और न कभी