भारत में अंगरेजी राज उनका लगाम बढ़ाया जावे। किन्तु दुर्भाग्यवश बांध की बुनियाद रक्खे जाने के दो साल के अन्दर ही टीपू की इस श्राहा का मूल्य केवल एक ऐतिहासिक लेख से अधिक न रह गया। फारसी शिलालेख का हिन्दी अनुवाद इस प्रकार है :- या फत्ताह (ऐ खोलने वाले यानी सब कठिनाइयों को दूर करने वाले ईश्वर)! उस अल्लाह के नाम से जो रहमान और रहीम है ! सन् १२२१ शादाब ( सौर), जो मोहम्मद साहब- ईश्वर उनकी आत्मा को शान्ति दे-के जन्म से शुरू हुश्रा, उसके तकी (ज्येष्ठ ) महीने की २६ तारीख को, तदनुसार शब २७ जिलहिज्ज सन् १२१२ हिजरी (चान्द्र), सोमवार के दिन, बहुत सवेरे, सूर्योदय से पहले, वृषभ लग्न और शुक घड़ी के प्रारम्भ में, ईश्वर की कृपा और रसूल की सहायता से, जमीन और जमाने के खलीफा चक्रवर्ती शहनशाह, जनाब हजरत टीपू सुलतान ने, जो माया हैं उस अल्लाह का जो सब का मालिक है और सब का दाता है, ईश्वर सदा उनके राज्य और उनको खिलाफत को बनाये रक्खे-कावेरी नदी के ऊपर राजधानी के पश्चिम में 'मुही' ( अर्थात् जान डालने वाला ) नामक बाँध की नीव रक्खी । शुरू करना हमारा काम है, पूरा करना अल्लाह के हाथ में है। जिस शुभ दिन नींव रक्खी गई उस दिन सूर्य, चन्द्रमा, शुक और बृहस्पति, चारों का मेष राशि में एक घर के अन्दर
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