पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/७५

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भारत में अंगरेज़ी राज

४६० भारत में अंगरेजी राज राज के उद्योग धन्धों और व्यापार को टोपू ने अपूर्व उन्नति दी। खास कर मैसूर के अन्दर सूती, ऊनी और 1 रेशमी कपड़ों के उद्योग ने जितनी तरक्की टीपू के समय में की, उतनी उससे पहले या उसके बाद अाज तक कभी नहीं की। उसके लोहे इत्यादि के कारखानों में अन्य चीज़ों के अलावा बढ़िया से बढ़िया तोप और दोनली तथा तीन नली बन्दूकें ढलती थीं। टीपू स्वयं विद्वान था और विद्या और विद्वानों से उसे बड़ा प्रेम था। विद्वान पण्डितों और मौलवियों दोनों टाएका विद्या का उसके दरबार में जमघट रहा करता था। उसका विशाल पुस्तकालय असंख्य, अमूल्य और अलभ्य पुस्तकों से भरा हुआ था। उसकी समस्त प्रजा सशस्त्र और सन्नद्ध थी, और उसके राज में चारों ओर वह खुशहाली नज़र पाती थी जो आस पास के अंगरेज़ी इलाके में कहीं देखने को भी न मिलती थी। टीपू का व्यक्तिगत जीवन अत्यन्त सरल,शुद्ध और संयमी था। उसका श्राहार अधिकतर दूध, बादाम और फल गत थे। शराब और अन्य मादक द्रव्यों से उसे सस चरित्र परहेज़ था । यहाँ तक कि उसने अपने राज भर में हर तरह की मदिरा और मादक द्रव्यों का बनना बिकना कतई बन्द कर रक्खा था। स्त्री जाति के सतीत्व की रक्षा का उसे जबरदस्त खयाल रहता था। अपनी लड़ाइयों में वह इसका खास खयाल रखता था कि उसके सिपाही इस विषय में कोई गलती न पता