। टीपू सुलतान ४३ हमें दुःख और लज्जा के साथ यह स्वीकार करना पड़ता है कि . औरगज़ब की मृत्यु के समय से सन् १८५७ के उसके चरित्र की को स्वाधीनता संग्राम नक अंगरेज़ों और भारत के सबसं पड़ी विशेषता सम्बन्ध के डेढ़ सौ वर्ष के गजनैतिक इतिहास में हमें हैदर और टीपू दो और केवल दो, व्यक्ति ही ऐसे नज़र आते हैं जिन्होंने कभी किसी अवसर पर भी अपने किसी देशवासी के विरुद्ध विदेशियों के साथ समझौता करना अङ्गीकार नहीं किया। विशेष कर टीपू यदि चाहता तो इस उपाय द्वारा आसानी से अपनी सत्ता के कुछ न कुछ अवशेष और सौ दो सौ साल के लिए छोड़ सकता था। वह मर मिटा, किन्तु मरते मरते उसने अपने दामन पर यह दाग लगने नहीं दिया। ध्यान पूर्वक खोज करने पर भी इन डेढ़ सौ साल के अन्दर हमें कोई और हिन्दू या मुसलमान, नरेश या नीतिश ऐसा नहीं मिलता जिसका चरित्र इस सम्बन्ध में सर्वथा निष्कलंक रहा हो। ____टीपू की मृत्यु के बाद उसको समाधि के ऊपर एक कवि ने मृत्यु की तारीख लिखते हुए कहा है- ___चं नाँ मर्द मैदों निहाँ शुद दुनिया, यके गुप्त तारीख्न शमशीर गुम शुद । अर्थात्-जिस समय वह वीर संसार की दृष्टि से अतीत हुआ, किसो ने तारीख के लिए ये शब्द कहे-'शमशीर गुम शुद',*- अर्थात् तलवार गुम हो गई।
- इन फारसी शब्दों से टीपू की मृत्यु का सन् निकलता है।