पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/८६

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अवध और फरजाबाद

अवध और फसावाद Ve मुझे इस बात का खयाल है कि इस काम से कम्पनी के एतबार और उसकी हालत में फरक आ जायगा और स्वयं मेरी म फिर अपनी मुल्क में कोई इज्जत रह जायगी और म बाहर xxx यदि ऐसा हुआ तो इन प्रान्तों में मेरी हुकूमत का अन्त हो जायगा।" नवाब ने वेल्सली को विश्वास दिलाया कि-"अपले मसनद पर बैठने के समय मैंने कम्पनी के साथ जो सन्धि की है उससे मैं कभी बाल भर भी इधर उधर न हूँगा, और xxx मुझे विश्वास है कि कम्पनी का इरादा भी उस सन्धि से फिरने का नहीं है।" सन् १७६८ की सन्धि का हवाला देते हुए मवाव सादतप्रली ने दिखाया कि कम्पनी की मौजूदा मांग अनावश्यक, अनुचित और सन् १७६८ की सन्धि के साफ़ विरुद्ध है। उस सन्धि की १७ वीं धारा में लिखा था कि-"अपने घरेलू मामलों, अपने पैतृक राज, अपनी सेना और अपनी प्रजा पर नवाब का अनन्य अधिकार रहेगा।" सादतअली ने पूछा कि-"यदि अपनी सेना का इन्तज़ाम तक मेरे हाथों से छीन लिया गया तो मैं पूछता हूँ कि अपने घरेलू मामलों, अपने पैतृक राज, अपनी सेना और अपनी प्रजा पर मेरा अधिकार कहाँ रहा?" ___ अन्त में नवाब सादतअली ने लिखा कि-"ऊपर लिखे कारणों से और कम्पनी सरकार की उदारता और आपकी इनायत से मुझे यह आशा है कि श्राप मेरी मित्रता और वफ़ादारी पर हर मौके के लिए पूरा एतबार करते हुए उस सन्धि के अनुसार मेरे राज, मेरी सेना और मेरी प्रजा के ऊपर मेरा पूरा अधिकार कायम रहने देंगे।"