पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज (दूसरी जिल्द).djvu/८७

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भारत में अंगरेज़ी राज

५०० भारत में अंगरेजी राज इस लम्बे पत्र के और अधिक वाक्य नकल करने की प्रावश्यकता नहीं है। लखनऊ ही के असिस्टेण्ट रेजिडेण्ट मेजर बर्ड का बयान है कि नवाब सादतअली के एतराज "जैसे जायज़ और सर्कयुक्त थे. वैसे हो न्यायपूर्ण भी थे" और मेजर बर्ड ही के शब्दों में वेल्सली का उत्तर "अहंकारयुक्त" था।* - वेल्सली के उत्तर का सारांश यह था कि सश्रादतनली का पत्र इतने गुस्ताखी के शब्दों में लिखा हुआ है कि गवरनर जनरल को उसे लेने से इनकार है, पत्र नवाब को वापस कर दिया जाय, और यदि नवाब ने फिर इसी तरह अंगरेज सरकार की न्यायप्रियता और ईमानदारी पर शक जाहिर किया तो उसे उचित दण्ड दिया जायगा। नवाब सश्रादतअली और वेल्सली के इस पत्र व्यवहार के सम्बन्ध में इतिहास लेखक जेम्स मिल इतिहास लेखक लिखता है- मिल की राय "दो पक्षों में एक सन्धि होती है। एक पर अपनी ओर से सन्धि की सब शर्तों को इतने ठीक समय पर पूरा कर देता है कि जो उसकी स्थिति के मनुष्य के लिए बिल्कुल बेमिसाल है। दूसरा पई सन्धि का घोर उल्लंघन करना चाहता है, या कम से कम पहले पक्ष को उसका कार्य सन्धि का घोर उल्लंघन मालूम होता है । पहले पक्ष को दूसरे ." To this remonstrance, as reasonably stated as it was justly founded, the following haughty reply was made by the Governor General Dacotteen Excelsss by Major Burd H-