पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/१०३

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
७५
इसलाम और भारत

इसलाम और भारत मलबार तट पर आकर बसने लगे थे । इतिहास लेखक स्टररॉक लिखता है कि-"सातवी सदी से लेकर ईरानी और अरब सौदागर भारत के पच्छिमी तट पर अलग अलग बन्दरगाहों में बड़ी बड़ी तादाद में आकर बसने लगे। ये लोग इसी देश की स्त्रियों के साथ शादियाँ कर लेते थे। इनकी बस्तियाँ मलबार में खास तौर पर बड़ी और महत्वपूर्ण थी, क्योंकि वहाँ पर बहुत शुरू ज़माने से मालूम होता है राज की यह एक नीति चली पाती थी कि बन्दरगाहों में व्यापारियों को हर तरह की सुविधाएँ दी जावे ।" धीरे धीरे दक्खिन में मुसलमानों का प्रभाव बढ़ता गया। राज की ओर से उन्हें तिजारत करने और जमीन खरीदने के साथ साथ अपने नए धर्म का प्रचार करने को भी पूरी सुविधाएँ दी जाने लगी। नवी सदी तक ये लोग समस्त पच्छिमी तट पर फैल गए । हम लिख चुके हैं कि भारत मे उस समय बौद्ध मत और जैन मन का हिन्दू मत और उसकी नई सम्प्रदायों के साथ संग्राम जारी था। इन अनेक नई हिन्दू सम्प्रदायों के मुक्काबले में, जिनका हम ऊपर ज़िक्र कर पाए हैं और जिनका ज़ोर उस समय बढना जा रहा था, इसलाम के सीधे सादे और सरल सिद्धान्तों और उसके अन्दर मनुष्यमात्र की समता के विचार की भोर लोगों का ध्यान ज़ोरों के साथ आकर्षित हुअा। इसलाम के विरुद्ध पक्षपात या उसकी ओर द्वेष का कोई सबब उस समय तक मौजूद न था। नवीं सदी के शुरू मे ही मलवार के हिन्दू राजा चेरामन पेरुमल ने, जिसकी राजधानी कोडङ्गलूर थी, इसलाम मत स्वीकार कर लिया । राजा का नाम अब्दुर-

  • Sturrock S Kanart, Mada as Distreet Mantuals , p 180

+ Logan Malabur, vol 1, p 245