पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/१०९

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इसलाम और भारत

इमलाम और भारत सीधे साडे सिद्धान्त थे, जो कम से कम उस समय के भारत की अनेक हिन्दू सम्प्रदायों के मुकाबले में मामूली जन सामान्य के लिए अधिक सरल, हितकर और सुसाध्य थे। भारत के जिन लोगों ने उस समय इसलाम मत स्वीकार किया, उनमें अधिकांश संख्या उन छोटी जाति के लोगों की थी जो उस समय की भारतीय वर्ण व्यवस्था को अपने लिए अन्याय अनुभव करते थे, और भारतवासियों की किसी संख्या का इसलाम मत स्वीकार करना ठीक वैसा ही था जैसा उनका वैदिक मत को छोड़ कर बौद्ध मत स्वीकार करना या बौद्ध मत को छोड़ कर वैष्णव मत या शैव मत स्वीकार करना, या चीनियों या बरमियों का अपने अपने मतों को छोड़ कर भारतीय बौद्ध मत को स्वीकार करना, इत्यादि। भारतवासियों और भारतीय नरेशों का अरब सौदागरों के साथ सुन्दर व्यवहार, उनका अपने अपने राज में इसलाम मत को पूरी स्वतन्त्रता देना, और उस शुरू ज़माने . के भारतवर्ष में हिन्दुओं और मुसलमानों का परस्पर प्रेम सम्बन्ध ही वह थात थी जिसके सबब बलीमा उमर ने अरब सेना को हिदायत की थी कि भारत पर सैनिक हमला न किया जाय, और जिसके सबब से एशिया, अफरीका और यूरोप में अरब साम्राज्य के पूरा विस्तार पर जाने के वर्षों बाद तक भी मुसलमानों की ओर से भारत पर हमला नहीं किया गया । भारत की करीब एक चौथाई श्राबादी के धीरे धीरे इसलाम मत स्वीकार करने में राजनैतिक दबाव या ज़बरदस्ती का हिस्सा कहाँ तक था,इसके सुवृत में हम केवल दो एक इतिहास लेखकों की सम्मतियाँ नीचे देते हैं। भारतीय मुसलमानों का जिक्र करते हुए इतिहास लेखक पारनॉल्ड लिखता है-