Samaste पुस्तक प्रवश निस्सन्देह कहीं कहीं इस तरह की मिसाले भी मिलती हैं जिनमें राजनैतिक या अन्य बातों से प्रेरित होकर भारत के किसी किसी मुसलमान नरेश ने इसलाम मत के प्रचार के हित में अपने अधिकारों का अनुचिन प्रयोग किया, किन्तु इसके विपरीत केवल बाबर और अकबर ही नहीं, बल्कि अधिकांश और असंख्य अन्य मुसलमान शासकों के लेख और उनकी अाज्ञाएँ इस विषय को नकल की जा सकती है, जिनसे मालूम होता है कि वे अपनी हिन्दू और मुसलमान प्रजा को एक दृष्टि से देखते थे और राज- शासन में किसी तरह का धार्मिक पक्षपात अपने लिए हितकर न समझते थे । इतिहास से यह बात बिलकुल स्पष्ट है कि वर्तमान भारतीय मुसल- मानों में से १० नहीं, ६६ फ़ीसदी के इसलाम मत स्वीकार करने का सबब केवल उस समय के असंख्य मुसलमान मनीरों, पीरों और दरवेशों की सच्चरित्रता और इसलाम की आन्तरिक सामाजिक और अन्य विशेषताएँ थीं। जिज्ञासु अरब अरवो के अन्दर नई धार्मिक लहरें भारत के ऊपर अरब के इस नए मत का प्रभाव केवल उव लाखों या करोड़ा भारतवासियों तक ही परिमित न था, जिन्होंने इस नए मत को स्वीकार कर लिया। उस समाजिक अराजकता के दिनों मे, जिसका चित्र हम tribute than of the work of conversion"-istatic Studies, by Sir Alfred Lyall, London, 1832, p 288
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