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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/१३८

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पुस्तक प्रवेश

पुस्तक प्रवश में उपयोग किया है, किन्तु उसने साफ़ लिखा है कि उसका रान दशरथ क पुत्र राम नहीं है। वह लिग्वता है- सिरजनहार न ब्याही सीता, जल पषाण नहिं बन्धा। थानी--सिरजनहार ने सीता से विवाह नहीं किया था और न उसने समुद्र के ऊपर पत्थरों का पुल बाँधा। ___कबीर ने अनेक स्थान पर दसों अवतारों का खण्डन किया है। वह ईश्वर के विषय में कहता है ---- दशरथ कुल अवतरि नहिं श्राया, नहिं लङ्का के राव सताया नहीं देवकी गर्भहि आया, नहीं यशोदा गोद खेलाया पृथ्वी रवन धवन नहिं करिया, पैठि पताल नाहिं बलि छलिया नहिं बलिराज सो माँडल रारी, नहिं हरनाकुश बधल पछारी बराह रूप धरणि नहिं धरिया, छत्री मारि निछत्री नहिं करिया नहिं गोबर्धन कर गहि धरिया, नहिं ग्वालन सँग बन बन फिरिया गण्डकि शालिग्राम नहिं कूला, मच्छ कच्छ होय नहिं जल डोला द्वारावती शरीर नहिं छाँडा, ले जगन्नाथ पिण्ड नहिं गाड़ा जात पाँत और छुआछून के विषय में कबीर ने कहा है- गुप्त प्रकट है एकै दूधा, का को कहिए ब्राह्मण शूद्रा। झूठे गर्भ भूलो मति कोई, हिन्दू तुरुक झूठ कुल दोई। और के छिये लेत हो छीछा, तुमसो कहहु कौन है नीचा। कबीर ने आवागमन के मोटे रूप का जिस तरह आम हिन मानते हैं खण्डन किया है। इस विषय में उसके विचार काफ़ी गूढ़ और गहरे हैं।