पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/१५२

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पुस्तक प्रवेश

पुस्तक प्रवश हिन्दू और मुसलमान दोनों भाई एक शरीर के हाथ और पैर हैं, दोनों एक शरीर के दो कान हैं, दोनों भाई दो आँखें है। न हम हिन्दू होंगे और न मुसलमान, घट दरसन के मतभेद से हमे कोई सम्बन्ध नहीं ! हमें केवल रहमान से प्रेम है । हिन्दू देवालय मे जाते हैं और मुसलमान मसजिद में । हमारा सम्बन्ध केवल एक अलख से है। उसी से हमें सदा प्रीत है। हमारे धर्म में न हिन्दू के देवालय की ज़रूरत है और न मुसलमान की मसजिद की। न वहाँ किसी कर्मकांड की ज़रूरत है। वहाँ सम्बन्ध केवल अपनी आत्मा से है। सतगुरू ने दिखला दिया है कि यह शरीर ही हमारी मसजिद है और यही हमारा देवालय है । अमली पूजा और नमाज़ अपने भीतर ही की जाती है फिर लोग बाहर क्यों जाते हैं? हिन्दू और मुसलमान अपने अपने झूठे अभिमान में दो हाथियों की तरह एक दूसरे से लड़ रहे हैं । जब तक उनमे अपने अपने धर्म का यह झूठा अभिमान है वे मिलकर सच्ची ईश्वर भक्ति का रस नहीं ले सकते । दादू ने अपने इग्म श्राप को मिटा दिया है। इसलिए दोनों मन उसके अन्दर समा गए हैं। ___पण्डितों, मुल्लाओं, जातपात, मूर्तिपूजा, तीर्थस्थान, हज इत्यादि के विषय में दाद के विचार ठीक वैसे ही थे जैसे कबीर के । पुनर्जन्म या आवा- गमन के सिद्धान्त को दादू ने अलङ्कार की तरह माना है । गुरु को उसने वेद और कुरान दोनों से बड़ा बताया है। मलूकदास एक और प्रसिद्ध महात्मा मलूकदास अकबर के समय में सन् १९७४