मानव धर्म १२१ ईसवी में कहा, इलाहाबाद में पैदा हुआ और औरङ्गजेब के समय में सन् १६८२ ईसवी में १०८ वर्ष की उम्न मे मरा । उसके मठ नेपाल और काबुल तक में मौजूद थे । उसके विचार मूर्तिपूजा, तीर्थयात्रा अन्य कर्मकाण्ड इत्यादि के विषय में ठीक कवीर और दादू के से थे। परलेवा, सब धर्मों की एकता, हिन्दू मुसलमानों के परस्पर प्रेम इत्यादि पर उसके विचार हर तरह अपने समय के अन्य महात्माओं के समान थे। वह लिखता है-- माला कहाँ औ कहाँ तसबीह, अब चेत इनहिं कर टेक न टेकै। काफ़िर कौन मलेच्छ कहावत, सन्ध्या निवाज समै करि देखै । है जमराज कहाँ जवरील है, काजी है श्राप हिसाब के लेखे । पाप औ पुण्य जमा कर बूझत, देत हिसाब कहाँ धरि फेकै। दास मलूक कहा भरमौ तुम, राम रहीम कहावत एकै। यानी-कहाँ माला और कहाँ तसबीह ! जागो और उनके भरोसे न रहो, कौन काफ़िर और कौन म्लेच्छ ! वही सन्ध्या और वही नमाज़ । यम कहाँ है और जिबराईल कहाँ पर है ! खुदा ही आप काज़ी है, और कोई हिसाब नहीं रखता । वही सब के पाप पुण्य को समझता है और हिसाब रखता है । मलूकदास ! तू कहाँ भूला है, राम और रहीम एक ही के नाम हैं। A
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