पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/१५८

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पुस्तक प्रवेश

पुस्तक प्रवेश की खूब तारोन की हैं और ईश्वर को "अलाह ला मकाँ" बताया है। गुलाल, भीका और पल्टूदास के कोई कोई पद्य कविता, भाव और भक्तिरस, तीनों को दृष्टि से अत्यन्त उच्च कोटि के हैं। इन सब मे सूफी परिभाषाएँ भर हुई हैं। ख़ुदा को उन्होंने प्रायः 'हक' ( सत्य) कह कर पुकारा है। पल्लूदास का एक पद है- पूरब में राम है पच्छिम खुदाय है, उत्तर औ दक्खिन कहो कौन रहता। साहिब वह कहाँ है, कहाँ फिर नहीं है, हिन्द औ तुरुक तोफान करता ॥ हिन्दू औ तुरुक मिलि परे हैं खंचि में, आपनी वर्ग दोउ दीन वहता। दाल पलटू कहै साहिब सव में रहै, जुदा ना तनिक मैं सांच कहता ॥ यानी—यदि राम पूरव में है और ख़ुदा पच्छिम में है, तब फिर उत्तर ओर दक्खिन में कौन रहता है ? खुदा कहाँ है और कहाँ नहीं है ? हिन्दू और मुसलमान ज्यर्थ तूफान खडा करते है । हिन्दू और मुसलमान लड़ते हैं और दोनों मज़हबों को एक दूसरे के विरुद्ध खेचते हैं। दास पलटू सच कहता है, खुदा सब से है, वह हरगिज़ बटा हुआ नहीं है । यही सच है। सत्यपीर की पूजा जिस तरह उत्तर भारत में हिन्दू और मुसलमानों के धार्मिक मेल की लहरे चल रही थीं, उसी तरह बङ्गाल और महाराष्ट्र मे भी उनके अक्स दिखाई देने लगे । बारवीं सदी के बङ्गाल में हिन्दुओं का मुसलमानों की