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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/१५९

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मानव धर्म

मानव धर्म १२७ दरगाहों में मिठाई चढ़ाना, कुरान पढना, और मुसलमानों के त्योहार मनाना और इसी तरह मुसलमानों का हिन्दुओं के धार्मिक रिवाजों की ओर क्रियात्मक आदर दिखलाना एक आम बात थी। इसी मेल जोल में से बङ्गाल के अन्दर एक नए देवता की पूजा शुरू हुई, जिसे 'सत्यपीर' कहते थे। हिन्दू और मुसलमान दोनों सत्यपीर की पूजा करते थे। कहा जाता है कि गौड़ का बादशाह हुसेनशाह इस नई सम्प्रदाय का संस्थापक था। निस्सन्देह सत्यपीर की पूजा सम्राट अकबर के 'दीने इलाही' का एक प्रारम्भिक रूप थी। पन्द्रवी सदी के अन्त में बङ्गाल के अन्दर महाप्रभु चैतन्य का जन्म हुश्रा । दिनेशचन्द्र सेन ने बङ्गला भाषा और बङ्गला साहित्य के इतिहास पर एक अन्यन्त महत्वपूर्ण पुस्तक लिखी है । उसमें वह लिखता है कि चैतन्य के जन्म से पहले--- "ब्राह्मणों का प्रभुत्व बहुत कष्टकर हो गया था। कुलीनता के पक्का होने के साथ साथ जाति भेद अधिकाधिक कड़ा होता चला गया। ब्राह्मण लोग कहने के लिए अपने धर्म में ऊँचे आदर्शों का प्रतिपादन करते थे, किन्तु जाति अन्धन के सबब मनुष्य मनुष्य में अन्तर बढ़ता जा रहा था। नीची जातियों के लोग ऊँची जातियों के लोगों के स्वेच्छाचार के नीचे आहें भर रहे थे। इन ऊँची जाति के लोगों ने नीची जाति वालों के लिए विद्या के दरवाजे बन्द कर रक्खे थे। इन लोगों के लिए अधिक ऊँचे जीवन में प्रवेश करने की मनाही थी और नए पौराणिक धर्म