284 पुस्तक प्रवेश पर ब्राहारणों का ठेका हो गया था, मानो वह कोई बाज़ारी चीज़ हो ।" इसलाम के सरल धार्मिक सिद्धान्तों और मनुष्य सात्र की समता के श्रादर्श ने उस समय के बङ्गाली समाज में तहलका मचा दिया । चैतन्य ने इस स्थिति पर गम्भीरता के साथ विचार किया । वह घर बार छोड कर देशाटन करने लगा ! अनेक साधुओं और फकीरों से उसकी भेंट हुई। चैतन्य के जीवन चरित्र का रचयिता कृष्णदास लिखता है कि वृन्दाबन मे एक मुसलमान पीर के साथ बैतन्य की भेंट हुई और पीर ने अपनी धार्मिक पुस्तक के आधार पर चैतन्य को एक खुदा की पूजा का उपदेश दिया । जदु भट्टाचार्य लिखता है--"चैतन्य के जीवन की अनेक घटनाएँ ऐसी हैं जिनसे पूरी तरह साबित है कि वह मुसलमानों से बडा प्रेम करता था। इसमें सन्देह नहीं कि मुसलमानों के विचारों का चैतन्य के उपदेशों पर बहुत बडा असर पड़ा। चैतन्य ने गुरु की सेवा और भक्ति का उपदेश दिया। जाति भेद का उसने कड़ा विरोध किया ! ब्राह्मणों के तमाम कर्मकाण्ड को उसने त्याज्य बताया ! चैतन्य के शिष्यों में हिन्दू और मुसलमान, उच्च जाति के लोग और नीच जाति के लोग, सब शामिल थे। उसके मुख्य शिष्यों में से तीन रूप, सनातन और हरिदास, मुसलमान थे। अपने तमाम शिप्यों में वह हरिदास से सब से अधिक प्रेम रखता था। कर्ताबाबा चैतन्य की सम्प्रदाय की एक शाखा का नाम कर्ताभज था। उसका
- History of Bengali Language and Literature, by Dinesh Chandra Sen.
+ Jadu Bhattacharya: Hinior Castes and Stets p. 464.