भारतीय कला और मुसलमान और दिल्ली इत्यादि की पुरानी मसजिदों, और तीसरी ओर मुग़ल समय के आगरे और दिल्ली के शाही महलों या भारतीय निर्माणकला के सब से अधिक सुन्दर नमूने, श्रागरे के ताज की ओर दृष्टि डाल लेना काली है। निस्सन्देह आगरे का ताज संसार की सब से उत्कृष्ट और सब से अधिक सुन्दर इमारतों में गिना जाता है, मारतीय निर्माणकला के मस्तक पर वह झूसर का काम देता है, देश की इस पतित अवस्था में भी प्रत्येक भारतवासी के सच्चे अभिमान और गौरव का पात्र है, और शिल्प के मैदान में इसलाम से पूर्व के भारतीय आदर्शों और बाद के मुसलिम अादर्णी, दोनों के प्रेमालिंगन का सबसे सुन्दर नमूना है। शिल्पकला के पण्डित हमें बताते हैं कि ईसा की तेरवी सदी से पहले की भारत की हिन्दू और मुसलमान इमारतें दो साफ अलग अलग श्रादर्शों के अनुसार बनी हुई दिखाई देती हैं, किन्तु उसके बाद की हिन्दू इमारतों पर मुसलिम छाप और मुसलिम इमारतों पर हिन्दू छाप भी उतनी ही साफ दिखाई देती है और दोनों के सौन्दर्य को बढाती हुई नज़र आती है। यही वजह है कि भारत की मुसलिम शिल्पकला, मिश्र की मुसलिम शिल्प- कला, शाम की मुसलिम शिल्पकला, ईरान की मुसलिम शिल्पकला और टरकी की मुसलिम शिल्पकला, इन सब में बहुत बड़ा अन्तर है । दिल्ली और आगरे के अलावा राजपूताना और काशमीर इत्यादि में भी इस मिश्रित कला आदर्श के काफी नमूने अभी तक मौजूद है । सोलवी सदी के बने हुए वृन्दावन के कुछ वैष्णव मन्दिर, सोनागढ़ के कुछ जैन मन्दिर, विजयनगर की अनेक इमारतें और सनवीं सदी का बना हुआ मदुरा का तिरूमलाई नायक का प्रसिद्ध महल भी इसी मिश्रित कला अादर्श के नमूने हैं।
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