मुग़लों का समय १५५ किन्तु बाद के निर्बल सम्राटों के समय में इस शाही प्राज्ञा पर ठीक ठीक अमल न हो सका। न्याय शासन अब हम मुगल समय के न्यायशासन को थोड़े से शब्दों में बयान करते हैं । अत्यन्त प्राचीन काल से भारत के हर गांव में एक ग्राम पञ्चायत होती थी जिसके पञ्चों का चुनना ग्रामवासियों के हाथों में होता था । इस ग्राम पञ्चायत को अपने गाँव के सब म्युनिसिपल अधिकार प्रास होने थे, और इनके अलावा गाँव वालों की जान माल की रक्षा और आस पास की सड़कों पर यात्रियों और व्यापारियों की हिफाज़त का काम भी इन्हीं के सुपुर्द होता था। हर पञ्चायत के मातहत चौकीदार होते थे, जो पञ्चायत से तनखाह पाते थे और जिन पर राज को किसी तरह का अधिकार न होता था। अपने यहाँ के दीवानी और फ्रोजदारी के मुकदमों को तय करने और अपराधियों को दण्ड देने का भी इस पञ्चायत को अधिकार होता था। यह पञ्चायत ही गाँव के बालकों और बालिकाओं की शिक्षा का प्रबन्ध करती थी, जिसका अधिक ज़िक्र हमने इस पुस्तक मे एक दूसरे स्थान पर किया है। अधिकांश नगरों और खास कर छोटे नगरों में भी इसी तरह की पञ्चायतें थीं जिन्हें इसी तरह के विस्तृत अधिकार प्राप्त थे । मुग़ल सम्राटों ने इन हज़ारों भारतीय ग्राम पञ्चायतों के प्राचीन अधिकारों में किसी तरह का भी दखल नही दिया, उन्होंने उन्हे ज्यों का त्यों कायम रक्खा, जिसका मतलब यह है कि अंगरेज़ों के आने से पहले सिवाय राज का लगान अदा कर देने के भारतीय ग्रामवासियों को स्वराज्य के अन्य करीब करीब सब अधिकार प्राप्त थे।
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