मुगलों का समय घर फैला हुआ था और "आशा अन्तरीप ( अफरीका) से लेकर चीन तक हर स्त्री और पुरुष सिर से पाँव तक कपड़े पहनता है और ये सब कपड़े भारतीय करधों के बने हुए होते थे।" अरब के सौदागर मिश्र में और यूरोप में भारत के बने हुए कपड़े लं जाकर बेचते थे। लङ्का, बरमा, मलाका, चीन, जापान, फिलिप्पाइन और मेक्सिको में उन दिनों भारत के कपड़ों की बेहद खपत थी । इस पुस्तक के अन्दर 'भारतीय उद्योग धंधों का नाश' शीर्पक अध्याय में हमने अङ्गरेजों के आने से पहले की भारतीय उद्योग धंधों की अवस्था को बयान किया है। उस समय के इतिहास और यूरोपियन और अन्य यात्रियों के वृत्तान्तों से यह भी पता चलता है कि मुग़ल समय का भारत न केवल उस समय के यूरोपियन देशों से ही कहीं अधिक घना बसा हुआ था, बल्कि इस समय के भारत से भी उस समय के भारत की आबादी कम से कम खास ख़ास प्रान्तों मे कहीं अधिक धनी थी। कलकत्ता, बम्बई और कराची का उस समय निशान न था। किन्तु आगरा, कन्नौज, विजयनगर, गोलकुण्डा, बीजापुर, मुलतान, लाहौर, दिल्ली, इलाहाबाद, पटना, उज्जैन, अहमदाबाद अजमेर और सूरत अत्यन्त घने बसे हुए सुन्दर और बड़े बड़े नगर थे, जिनमें से हर एक उस समय के लन्दन या पेरिस से कई गुना बड़ा था। यूरोप मे कहीं भी उस समय अाजकल के समान मर्दुमशुमारी का बाज़ाब्ता रिवाज न था। भारत में घरों के हिसाब से श्राबादी की गणना की जाति थी। फ्रान्स की आबादी मोरलैण्ड के अनुसार उस समय इस समय से आधी थी, इङ्गलिस्तान की आबादी इस समय का आठवाँ हिस्सा थी। विजयनगर के विषय में कॉण्टी, अबुलरजाक, पेज़ और दूसरे यात्री लिखते हैं कि वहाँ
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