पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/२०८

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।
१७४
पुस्तक प्रवेश

RanandPRE पुस्तक प्रवेश { के मध्य में सुप्रसिद्ध सम्राट अकबर के रूप में श्राकर खिला । प्रति रेज़ विद्वान एच० जी० मेल्स सम्राट अकवर के विषय में लिखता है हर इस तरह के पक्षपात से शून्य-जो समाज के टुकड़े टुकड़े करके मतभेद पैदा करते हैं, दूसरे धर्मों के लोगों की ओर उदार, हिन्दू या द्रविड़ समस्त जातियों के लोगों की ओर समदर्शी, यह एक इस तरह का मनुष्य था जो साफ़ साफ़ अपने साम्राज्य भर की परस्पर विरोधी जातियों और श्रेणियों को मिलाकर एक प्रबल, और समृद्ध राष्ट्र बना देने के लिए पैदा हुआ था।" एक दूसरे स्थान पर एच० जी० वेल्स लिखना है-- “एक सच्चे नीतिज्ञ के समान उसमें समन्व्य की स्वाभाविक प्रवृत्ति मौजूद थी। उसने निश्चय किया कि मेरा साम्राज्य न मुसलिम होगा न मुग़ल, न राजपूत होगा न आर्य, व द्रविड होगा न हिन्दू, न उच्च जातियों का होगा न नीच जातियों का, मेरा साम्राज्य भारतीय साम्राज्य होगा।" थकबर भारत की उन राष्ट्रीय लहरों का केवल मूर्तिमान फल था

  • Free from all those prerudices which separate society and c

ustous, tolerant to men of other beltets, impartial to ren of other r ther Hindoo or Dravidian, he was a man ohruously marked out to onfiicting elements of has kingdum into a strong and prosperons w The Outline of History, by H.G. Wells, London, p 455

  • " HIs Instinct was tre true statesman's instinct for synthesis

Tre was to be nerther Mosien aor & Mughal ane, nor was it ur or Anyan or Dravidran, or Hindoo or bigh or low caste, it was . 2n."Jbrd, p. 454