पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/२१६

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पुस्तक प्रवेश

पुस्तक प्रवेश सदाचार और मानव प्रेम की अवहेलना कर कर्मकाण्ड और रूढ़ियों में जन सामान्य को फँसाए रखना और विविध मतों और सम्प्रदायों को एक दूसरे से पृथक करने वाली, मानव समाज के टुकड़े करने वाली, कृत्रिम दीवारों को बनाए रखना अपना सबसे बड़ा कर्तव्य समझते हैं । दुर्भाग्यवश अलग अलग मतों के पुरोहितों या मुल्लाओं का व्यक्तिगत हित भी इसी में होता है। जिस समय भारत में कबीर और अकवर जैसों की चलाई हुई लहरें इन सङ्कीर्ण प्रवृत्तियों को सदा के लिए अन्त करने वाली ही थीं, ठीक उस समय, श्राज से पौने तीन सौ साल पहले, वह दुर्घटना हुई जिसने इस समस्त राष्ट्रीय प्रगति को उलट पुलट कर दिया। दाराशिकोह और औरङ्गजेब शाहजहाँ का बडा लड़का दाराशिकोह अपने पिता, पितामह और प्रपितामह के समान भारत की इस राष्ट्रीय प्रगति का सच्चा प्रतिनिधि, उसका भक्त और अनुयाई था । दाराशिकोह प्रसिद्ध हिन्दू सन्त बाबालाल का शिष्य था । दाराशिकोह की फारसी पुस्तक 'नादिरुन्निकात', जिसमें दारा ने अपने गुरु बाबालाल के साथ अपने वार्तालाप को बयान किया है, वेदान्त के ऊपर फ़ारसी के सर्वोत्तम ग्रन्थों में गिनी जाती है। द्वारा के लिए ईश्वर का सबसे प्यारा नाम 'प्रभु' था, जो उसकी मोहर नक में खुदा हुआ था। दारा के छोटे भाई औरङ्गजेब ने दारा को हटा कर पिता की गद्दी पर बैठना चाहा । देश की समस्त उन्नत शक्तियाँ स्वभावतः दारा की अोर थीं । विशेष कर समस्त हिन्दू समाज दारा के पक्ष में था। दारा को शिकस्त देने के लिए औरङ्गजेब को कट्टर मुल्लाओं और इसलाम की सङ्कीर्ण प्रवृत्तियों को अपनी ओर करना पड़ा। देश की उन्नति में बाधा डालने वाली इन