मुग़लो का समय १८१ खिलाफ खड़े हो गए । जिस तरह औरङ्गजेब ने सङ्कीर्ण मुसलिम शक्तियों को अपनी ओर किया, उसी तरह मराठों और सिखों ने, हिन्दू सङ्कीर्णना का प्राश्रय लिया। सारा देश दो विरोधी दलों में बँट गया। कुछ वर्षों के अन्दर ही कबीर और अकबर जैसों के महान प्रयत्नों और मदियों की राष्ट्रीय प्रगति का सत्यानाश हो गया । औरङ्गज़ब संयमी और बलवान था । वह अपनी जिन्दगी भर केवल उस सङ्गठित शक्ति के सहारे, जो बावर से लेकर शाहनहाँ तक के शासनकालों में मुग़ल साम्राज्य ने प्राप्त कर ली थी, चारों ओर के विद्रोहों को दमन करता रहा । किन्तु जिस साम्राज्य की नींव देश वासियों के हित और उनकी सहानुभूति पर कायम की गई थी वह अब केवल हथियारों के बल के सहारे चलाया जाने लगा। दुर्भाग्यवश औरङ्गजेब का शासनकाल भी बहुत लम्बा था ! अलग अलग धासिक सङ्कीर्णता को दोनों ओर बल पास करने और समता, उदारता, प्रेम और युकला की शक्तियों को तितर बितर होने का काफी मौका मिल गया। औरङ्गजेब के मरते ही भारतीय साम्राज्य के टुकड़े टुकड़े होने लगे । देश की प्रधान राजनैतिक सत्ता के निर्बल होने के साथ साथ देश के समस्त उद्योग धन्धों, व्यापार, साहित्य और सुख समृद्धि के भी नाश के बीच बोए गए। औरङ्गजेब के बाद बहुत सम्भव है कि औरङ्गजेब के बाद देश फिर अपनी ग़लती को अनुभव कर उस ग़लती के बुरे नतीजों को दूर कर लेता और शीघ्र ही फिर एक बार पहले की तरह ऐक्य, स्वस्थता और उन्नति के पथ पर चलने लगता बहुत दरजे तक देश ने ऐसा किया भी जज़िया औरङ्गजेब ही के समय में
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