पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/२२६

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पुस्तक प्रवेश

पुस्तक प्रवेश सबसे पहली बात इस सम्बन्ध में हमें यह समझनी होगी कि किसी एक कम सभ्य कौम का अपने में अधिक सभ्य कौम पर विजय प्राप्त कर लेना या उसे पराजित कर लेना कोई नई घटना नहीं है। संसार के इतिहास में अनेक बार अधिक सभ्य कौमें अपने से कम सभ्य कौमों का इस तरह शिकार होती रही हैं। यूरोप में गॉल और बेण्डाल कौमों के जिन लोगों ने उत्तर और पूरब मे जाकर विशाल रोमन साम्राज्य पर हमला किया और उस साम्राज्य के सदा के लिए टुकड़े टुकड़े कर डाले, वे रोमन लोगों की निस्बत कही कम सभ्य थे । जिन तातारियों और मुग़लों ने आज से हज़ार डंढ हज़ार साल पहले पूरब और मध्य एशिया से निकल कर बादाद और ईरान के गौरवान्वित साम्राज्यों का अन्त किया वे उस समय के अरबों और ईरानियों के मुकाबले में सर्वथा असभ्य थे । मध्य एशिया की असभ्य जातियों ने ही समृद्ध यूनानी साम्राज्य का खात्मा कर डाला । भारतवासियों का भी अपने से किसी कम सभ्य जाति के इस तरह अधीन हो जाना इसी तरह की एक घटना थी। इस विचित्र ऐतिहासिक घटना के श्राम तौर पर दो सबब हो सकते हैं । एक तो अधिक उच्च सभ्यता लोगों में थोड़ी बहुत बारामतलबी की आदत पैदा कर देती है और असभ्य कौमों की उद्दण्ड पराक्रमशीलता उनमें नहीं रह जाती। दूसरे यह कि असभ्य या कम सभ्य लोग जिस निस्सङ्कोच भाव के साथ अपनी पाशविक प्रवृत्तियों और शक्तियों का उपयोग कर सकते हैं, अधिक लभ्य लोग अपने यहाँ के नैतिक आदर्शों के अधिक स्थिर हो जाने के कारण उस तरह नहीं कर सकते । पराजय के तीन कारण भारत की इस दुर्घटना के हमें तीन मुख्य कारण साफ दिखाई देते हैं-