भारत में यूरोपियन जातियों का प्रवेश जमा होकर भारत, ईरान श्रादि एशियाई देशों का बना हुआ माल यूरोप के सब देशों में पहुँचता था। समुद्र के रास्ते यूरोप से भारतवर्ष श्राने जाने का मार्ग उस समय किसी को मालूम न था। न उस समय कोई यूरोपियन जाति इतनी बलवान या इतनी धनवान थी और न यूरोप से बाहर का कोई गैर-ईसाई मुल्क उस समय किसी यूरोपियन ईसाई जाति के अधीन था। ईसा की पन्द्रवीं सदी में कुछ साहसी यूरोपनिवासियों के . दिलों में भारत का जल-मार्ग ढूंढ़ निकालने की भारत के जलमार्ग उत्कण्ठा उत्पन्न हुई, इसके दो खास सवव थे। की खोज एक यह कि स्थल-मार्ग से माल के लाने लेजाने में अनेक असुविधाएँ झेलनी पड़ती थीं। बीच में कई जगह माल को उतारना और फिर से लादना पड़ता था। कई कई जगह पुलों पर, सड़कों पर और मंडियों में चुङ्गी देनी होती थी। सड़के कहीं अच्छी थीं तो कहीं खराब और कहीं बिलकुला न थीं। मार्ग में डाकुओं और जंगली जानवरों का भय रहता था। देर अधिक लगती थी और लागत इतनी आ जाती थो कि विशेष कर यूरोप के उत्तर और पच्छिम के हिस्सों तक पहुँचते पहुँचते माल के दाम बहुत बढ़ जाते थे। दूसरा यह कि यूरोप के अंदर एशियाई माल का समस्त व्यापार उन दिनों प्रायः इतालिया के सौदागरों के हाथों में था, जिनकी कमाई को देख देख कर उत्तर और पच्छिम की यरो पियन जातियों की स्पर्धा और उनकी धन-लोलुपता और अधिक भड़कती थी।
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