भारत में अंगरेजी राज संसार का सब से अधिक धनवान देश माना जाता था। ईसा की अठारवीं सदी तक यह देश संसार भर के यात्रियों के लिए एक अपूर्व चमत्कार की जगह, कवियों के लिए उनकी उच्चतम कल्पनाओं का एक विषय और धन-लोलुप जातियों के लिए उनकी लालसा का मुख्यतम पदार्थ बना हुआ था। सैकड़ों और हज़ारों वर्षों तक समस्त यूरोप, वल्कि समस्त संसार के बाज़ारों और मंडियों में अच्छे से अच्छे रेशमी और सूती कपड़े, जेवर, बरतन और तरह तरह के अन्य अद्भत पदार्थ हिन्दोस्तान के बने हुए ही दिखाई पड़ते थे। संसार के व्यापारियों को उस समय भारतीय धन और भारतीय वैभव के ही स्वम दिखाई देते थे, और इस भारतीय धन का लालच ही यूरोप निवासियों को इस प्राचीन देश की ओर खींच कर लाया। वास्तव में बहुत दरजे तक भारत का यह प्राचीन धन-वैभव ही इस देश की समस्त आपत्तियों का मूल कारण हुआ। ___ चार सौ साल पहले तक भारत और यूरोप के बीच का समस्त व्यापार अरब और ईरान के सौदागरों के ज़रिए होता था। ये साहसी सौदागर भारत के पच्छिमी तट पर भारत के कीमती माल से अपने जहाज़ लादते थे, फिर अरब और ईरान की खाड़ियों से होकर उस माल को अपने देशों में ले जाते थे, और फिर वहाँ से अधिकतर खुश्की के रास्ते ऊँटों और गाड़ियों पर लाद कर उसे यूरोप और अफ़रीका के तमाम देशों में पहुँचाते थे। यूरोप में व्यापार की सब से बड़ी मंडियाँ उस समय इतालिया ( इटली) देश के वेनिस, जेनोत्रा श्रादि बन्दरगाहों में थीं और वहाँ ही से
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