पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/२५७

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भारत में यूरोपियन जातियों का प्रवेश

भारत में यूरोपियन जातियों का प्रवेश के बाद के जीवन पर खासा ज़बरदस्त पड़ा। किन्तु भारत का जल-मार्ग दंढ़ निकालने की दृष्टि से कोलम्बस का प्रयत्न बिलकुल निष्फल गया। यह एक खास बात है कि कोलम्बस भरते समय तक अमरीका ही को हिन्दोस्तान समझता रहा और उसी भ्रम के सिलसिले में आज तक यूरोपनिवासी अमरीका के पुराने बाशिन्दों को “इण्डियन्स" या "रेड इण्डियन्स" और अमरीका के पास के टापुओं को "वेस्ट इण्डीज़" कहते हैं। सब से पहला यूरोपनिवासी, जिसे इस प्रयत्न में सफलता प्राप्त भारत में हुई, पुर्तगाल का रहने वाला वास्को-दे-गामा पुर्तगालियों का नामक एक नाविक था। वास्को-दे-गामा का जहाज़ प्रवेश अफरीका के नीचे से अाशा अन्तरीप (केप अाफ़ गुडहोप) का चक्कर लगाता हुअा २२ मई सन् १५६८ ईसवी को मलावार तट पर कालीकट के पास आकर ठहरा * कालीकट का राजा उस समय एक हिन्दू था जिसे सामुद्रिक या सामुरी (जामोरिन) कहते थे। इस राजा ने वास्को-दे-गामा और उसके ईसाई साथियों का बड़े हर्ष के साथ स्वागत किया और इनकी खूब खातिरदारी की। पुर्तगालियों की प्रार्थना पर सामुरी ने उन्हें अपने राज में रहने और व्यापार करने की इजाजत दे दी। पुर्तगाल से आना जाना बढ़ता गया।

  • मौजूदा नहर स्वेज़ सन् १८६६ में खुली। इससे पहले लोग

इसी चक्कर के रास्ते कई महीने में यूरोप से भारत आते जाते थे।