भारत में अगरेजी राज था वहाँ की प्रजा को जबरदस्ती ईसाई बना लेना वे अपना धर्म समझते थे। गोश्रा में उन्हों ने अपनी गैर-ईसाई प्रजा को पकड़ कर और उन्हें ला-मजहब कहकर मार डालने और जिन्दा जला देने के लिए एक अदालत कायम कर रक्खी थी, जिसे "इकिज़िशन" कहते थे। इसीलिए आज तक गोआ की अधिकांश आवादी ईसाई है। अपनी हिन्दोस्तानी प्रजा की बेहतरी के लिए पुर्तगालियों ने कभी किसी तरह के यत्न नहीं किये। १७ वीं सदी के शुरू में पुर्तगालियों का व्यापार बंगाल की ओर फैलने लगा। बंगाल के किसी हिस्से पर पुर्तगालियों को पर्तगालियों का राज कायम न हुन्मा, किन्तु सत्ता का अन्त - वहाँ भी वही लूट मार, वही ज़्यादतियाँ, वही गुलाम और बांदियों का व्यापार चल पड़ा। इस समय तक मुग़ल साम्राज्य की जड़ें पक्की हो चुकी थीं। शाहजहाँ अब दिल्ली के तख्त पर था। वंगाल की हुकूमत दिल्ली सम्राट के अधीन एक सूबेदार के हाथ में थी। सूबेदार ने अपने अहलकारों के जरिए पुर्तगालियों को उनकी ज़्यादती के विरुद्ध आगाह किया। पुर्त- गालियों ने सूबेदार की आज्ञाओं की खाक परवा न की। इन बातों की शिकायत शाहजहाँ के कानों तक पहुँची। उसने तुरंत पुर्तगालियों के दमन के लिये एक सेना भेजी। पुर्तगाली हरा दिये गये, उनकी हुगली की कोठियाँ गिरा दी गई । उनके जहाज़ जला डाले गए और बचे खुचे पुर्तगाली कैद करके आगरे पहुँचा दिये गए । यहीं से पुर्तगालियों की भारतीय सत्ता का अन्त शुरू होता है।
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