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पृष्ठ:भारत में अंगरेज़ी राज - पहली जिल्द.djvu/२६७

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भारत में यूरोपियन जातियों का प्रवेश

भारत मे यूरोपियन जातियों का प्रवेश ईसवी में भारत पहुँचा और अपनी नम्रता और सौजन्य द्वारा उसने अंगरेजी तिजारत के लिये सम्राट से अनेक नई रियायतें हासिल कर ली। मिसाल के तौर पर सन् १६१६ में अंगरेजों को कालीकट और मछलीपट्टन में कोठियाँ बनाने की इजाजत मिल गई। उस समय भारत में रहने वाले अंगरेज़ चूंकि भारत सम्राट की प्रजा थे, इसलिये यदि उनमें कोई झगड़ा होता था तो देशी श्रदालतों में ही उसकी सुनाई होती थी और वहीं से उन्हें दंड आदि दिये जाते थे। सन् १६२४ ईसवी में अंगरेजों की प्रार्थना पर जहाँगीर ने एक शाही फ़रमान इस मजमून का जारी कर दिया कि आइन्दा अपनी कोठी के अंदर रहने वाले कम्पनी के किसी मुलाजिम के कसूर करने पर अंगरेज उसे स्वयं दंड दे सकते हैं । इस घटना की आलोचना करते हुए एक विद्वान अंगरेज इतिहास लेखक टॉरेन्स लिखता है :- "बादशाह न्यायशील और बुद्धिमान था । वह उनकी आवश्यकताओं को समझता था। जो उन्होंने माँगा उसने मंजूर कर लिया। उसे यह स्वम में भी नज़र न आ सकता था कि एक दिन अंगरेज़ इसी छोटी सी जड़ से बढ़ते बढ़ते बादशाह की प्रजा और उसके उत्तराधिकारियों तक को दंड देने का दावा करने लगेंगे और यदि उनका विरोध किया जायगा तो प्रजा का संहार कर डालेंगे और बादशाह के उत्तराधिकारी को बागी कह कर श्राजीवन कैद कर लेंगे*"

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