भारत में यूरोपियन जातियों को प्रवेश इसके बाद औरंगजेब का समय आया। बम्बई का टापू, जहाँ पर उस समय केवल एक छोटी सी पुर्तगाली बस्ती बम्बई का रायू
- थी, सन् १६६१ ई० में इङ्गलिस्तान के बादशाह
को पुर्तगालियों से दहेज में मिला और सन १६८- ईसवी में ईस्ट इण्डिया कम्पनी ने उसे अपने बादशाह से खरीद लिया । सन् १६६४ ईसवी के निकट शिवाजी का बल बढ़ने लगा। सूरत के अंगरेज़ कोठीवालों ने औरंगजेब से वादा किया कि हम शिवाजी के खिलाफ आपको मदद् देंगे और मुगल साम्राज्य की ओर से सूरत की रक्षा करेंगे ! इससे खुश होकर औरंगजेब ने उनके साथ कई तरह की नई रियायतें कर दी। किन्तु शुरू के इन अंगरेज़ व्यापारियों का सदाचार और व्यवहार अत्यन्त गिरा हुना था। किसी भी दूसरी कौम अंगरेज व्यापारियों के माल से लदे जहाज़ को पकड़ कर लूट लेना का चरित्र न इनके लिये एक मामूली बात थी। स्वयं अपने अंगरेज़ भाइयों और अन्य यूरोपियनों के साथ इनके सुलूक की यह हालत थी कि जो मनुष्य इनसे सस्ता माल बेचता था या किसी और तरह उससे इनके व्यापार में बाधा पड़ती थी, उसे ये मौका पाकर पकड़ लेते थे और या तो कोड़े मार मार कर मार डालते थे और या अपनी कोठी में बंद करके भूखों मार देते थे।* .
- . . . tney made it a rule to whip to death or starve to death those
of whom they wished toget rnd, .. . to murder private traders"--1217, wilson'snote, rol.., Chanse